सही बुद्ध वंदना
तथागत भगवान सम्यक संबुद्ध की वंदना कैसे करें ?
तथागत भगवान बुद्ध का सही अनुयायी कौन है ?
उत्तर :
मेरे प्यारे साधक-साधिकाओं,
कोई व्यक्ति किसी बुद्ध विहार में जाकर बुद्ध की मूर्ति को पंचांग या साष्टांग प्रणाम करें तो बहुत अच्छी बात है, धूप-दीप जलाएं और पुष्प चढाएं तो बहुत अच्छी बात है ।
लेकिन अगर वह व्यक्ति शील पालन नहीं करतो हो,
सम्यक समाधि का अभ्यास नहीं करता हो,
प्रज्ञा जगाने का अभ्यास नहीं करता हो,
तथागत भगवान बुद्ध के बताए अष्टांगीक मार्ग पर नहीं चलता हो,
तथागत भगवान बुद्ध के बताए दस पारमीताएँ पूर्ण करने का प्रयास नहीं करता हो,
बुद्ध वाणी का अभ्यास और आचरण नहीं करता हो……
तो वह व्यक्ति तथागत भगवान बुद्ध का अनुयायी नहीं है, कदापि नहीं है ।
ऐसा व्यक्ति किसी बुद्ध विहार में जाकर बुद्ध की मूर्ति को पंचांग या साष्टांग प्रणाम करें, धूप-दीप जलाएं, पुष्प चढाएं, वंदना का पाठ करें या कोई सुत्रपठन करें, तो भी वह सिर्फ और सिर्फ एक कर्मकांड ही बनकर रह जाएगा, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा युक्त कर्मकांड ।
पर यदि कोई व्यक्ति बुद्ध विहार में न भी जाएँ, बुद्ध मूर्ति के सामने धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प आदि न भी चढाएँ तो भी,
अगर वह व्यक्ति :-
? प्राणि-हत्या करने से विरत रहता है,
और सभी प्राणियों के प्रति मंगल मैत्री करते रहता हैं तो,
? चोरी करने से विरत रहता है,
और
नियमित रूप से शुद्ध चित्त से दान, धर्म दान देते रहता है, सेवा, धर्म सेवा करते रहता है तो,
? व्यभिचार से विरत रहता है,
और यथासंभव ब्रम्हचर्य का पालन करता है तो,
? झूठ बोलने से, कड़वी, कटु, निंदा, चुगली की बात बोलने से विरत रहता है,
और
सदा सत्य बोलता है तो,
? नशे-पते के सेवन से विरत रहता है,
और
सदा सम्यक समाधि & प्रज्ञा का अभ्यास करते रहता है तो,
? शस्त्र, मदिरा, विष, मांस और जीवों के क्रय-विक्रय की आजीविका से विरत रहता है तो,
? हिंसा और काम-क्रोध के चिंतन-मनन से विरत रहता है तो,
? जाति-जन्म के आधार पर मानव मानव में ऊंच-नीच का भेदभाव करने से विरत रहता है तो,
? अपने सहज स्वाभाविक आश्वास-प्रश्वास के प्रति सजग रहकर एकाग्रता का अभ्यास करता है तो,
? अपने चित्त पर उठे विकार और तज्जनित शारीरिक संवेदनाओं के प्रति सजग रहने का अभ्यास करता है तो,
? शारीरिक संवेदनाओं के अनुभव के आधार पर शरीर और चित्त के अनित्य स्वभाव का दर्शन करता है तो,
? सुखद से सुखद संवेदना भी अनित्य होने के कारण दुःख में ही परिणत होने वाली है; अतः वस्तुतः दुःख ही है। इस सत्य का स्वयं दर्शन (अनुभव) करता है तो,
? सारे शरीर स्कन्ध में जब सुखद, सूक्ष्म संवेदनाओं का प्रवाह ‘चलने लगता है तो उनका आस्वादन भयावह है, खतरनाक है, भवचक्र बढ़ाने वाला है- यूं समझकर उनके प्रति निर्वेद उत्पन्न करता है तो,
? शरीर और चित्त प्रपंच कार्य-कारणों के नियमों के अनुसार अनुप्रवर्तित हो रहा है। इसमें मैं, मेरा, मेरी आत्मा का आभास मात्र होता है, जो प्रवंचक है-इस सत्य का दर्शन (अनुभव) करता है तो,
? जैसे भीतर वैसे बाहर यह आंख, नाक, कान, जीभ, त्वचा और मन तथा रूप, गंध, शब्द, रस, स्पर्श और चिंतन का सारा प्रपंच अनित्य ही है, दुःख ही है, अनात्म ही है, इस सत्य का प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा दर्शन करता है तो,
? शरीर और चित्त अथवा इंद्रियां और उनके विषय अनित्य, दुःख, अनात्म हैं; ऐसा प्रत्यक्ष अनुभव करके तज्जन्य किसी भी सुखद अनुभूति के प्रति राग नहीं जगाता, किसी भी दुखद अनुभूति के प्रति द्वेष नहीं जगाता, किसी असुखद-अदुखद अनुभूति के प्रति मोह नहीं जगाता तो,
? जो आंतरिक संवेदनाओं के प्रति अनित्य बोध जगाकर राग-द्वेष और मोह के नये संस्कार नहीं बनाता और अविचल उपेक्षा समता में स्थित रहकर पुराने कर्मसंस्कारों का उन्मूलन करता है तो,
? जो व्यक्ति उठते-बैठते, चलते-फिरते, खाते-पीते, नहाते-पीते, सोते-जागते हर अवस्था में सति याने सजगता और संप्रज्ञान में स्थित रहता है तो,
? जो निरंतर स्मृति और संप्रज्ञान में स्थित रहने का अभ्यास करते करते श्रोतापन्न के मार्ग-फल का साक्षात्कार करके सगदागामी अनागामी और अर्हन्त अवस्था के मार्ग-फल का स्वयं साक्षात्कार कर लेता है तो,
? जो सदा मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा का जीवन जीता है। और लोक सेवा में निरत रहता है तो,
साथकों ! ऐसा व्यक्ति अपने आपको बौद्ध कहे अथवा न कहे, वह मुक्ति-मार्ग का पथिक हैं, तथागत भगवान बुद्ध का सही अनुयायी हैं और अपना मनुष्य जीवन सार्थक कर ही लेता है । अपने तथा अनेकों के कल्याण का कारण बनता ही है।
संक्षिप्त में: जो लोग तथागत भगवान सम्यक संबुद्ध के बताएँ आर्य अष्टांगीक मार्ग पर चलते हुए दस पारमिताओं को बढ़ाने का प्रयास करते हैं, केवल वे लोग ही तथागत भगवान सम्यक संबुद्ध के सही अनुयायी हैं । और यह ही बुद्ध की सही वंदना है ।
अर्थात जो लोग धर्म का अभ्यास और आचरण करते हैं, केवल वे लोग ही तथागत भगवान सम्यक संबुद्ध के सही अनुयायी हैं । और यह ही बुद्ध की सही वंदना है ।
आओ! हम भी इसी प्रकार सही बुद्ध वंदना करें और अपना कल्याण साध लें ! औरों के कल्याण में भी सहायक बनें!
कल्याणमित्र
सत्यनारायण गोयन्का ।