*मछ सुत्त*
*एक बार महान भिक्षु संघ के साथ भगवान कोशल जनपदमें विचर रहे थे।*
*रास्ते चलते भगवान ने एक प्रदेश-विशेष में एक मछुए को देखा, मछली पकड़ने वाले को देखा कि वह मछलियों को मार मार कर बेच रहा है। भगवान एक वृक्ष के नीचे बिछे आसन पर जा विराजमान हुए। बैठकर भगवान ने भिक्षुओं को सम्बोधित किया—*
*“भिक्षुओ, इस मछुवे को, मछली पकड़ने वाले को, मछलियाँ मार मार कर बेचने वाले को देखते हो?”*
*” भन्ते ! हाँ।”*
*” तो भिक्षुओ, क्या मानते हो? क्या तुमने कहीं देखा या सुना है कि कोई मछुवा हो, मछली पकड़ने वाला हो, मछली मार मार कर बेचने वाला हो और वह उस कर्म से, उस जीविका के साधन से हाथी पर चढ़ने वाला हो गया हो, घोड़े पर चढ़ने वाला हो, रथपर चढ़ने वाला हो गया हो, या किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला हो, भोग्य-पदार्थों का स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्य शाली हो गया हो?”*
*” भन्ते ! नहीं।” ।*
*“भिक्षुओ! ठीक है। मैंने भी न कहीं देखा है और न सुना है कि कोई मछुवा हो, मछली पकड़ने वाला हो, मछली मार मारकर बेचनेवाला हो और वह उस कर्म से, उस जीविका के साधन से, हाथीपर चढ़नेवाला हो गया हो, घोड़े पर चढ़नेवाला हो गया हो, रथपर चढ़नेवाला हो गया हो या किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला हो गया हो, भोग्य-पदार्थोंका स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्यशाली हो गया हो।*
*इसका क्या कारण है ? भिक्षुओ, वह मछुवा उन बध करने के लिये लाई गई मछलियों को पाप-पूर्ण दृष्टि से देखता है। इसी से वह न हाथीपर चढ़नेवाला होता है, न घोड़े पर चढ़नेवाला होता है, न रथपर चढ़नेवाला होता, न किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला होता है, न भोग्य-पदार्थों का स्वामी होता है और न बहुत ऐश्वर्यशाली होता है।*
*”तो भिक्षुओ, क्या मानते हो ? क्या तुमने कहीं देखा या सुना है कि कोई गौ-घातक हो और वह गौओं को काट काट कर बेचता हो, और वह उस कर्म से, उस जीविका के साधन से हाथीपर चढ़नेवाला हो गया हो, घोड़ेपर चढ़नेवाला हो गया हो, रथपर चढ़ने वाला हो गया हो, या किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला हो गया हो, भोग्य-पदाथका स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्य-शाली हो गया हो ?’*
*”भन्ते ! नहीं।’*
*“भिक्षुओ, ठीक है। मैंने भी न कहीं देखा है और न सुना है कि कोई गौघातक हो और वह गौओंको काट काटकर बेचता हो, और वह उस कर्म से, उस जीविकाके साधन से हाथीपर चढ़नेवाला हो गया हो, घोड़ेपर चढ़नेवाला हो गया हो, रथपर चढ़ने वाला हो गया हो, या किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला हो गया हो, भोग्य-पदार्था का स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्य-शाली हो गया हो। इसका क्या कारण है ?*
*भिक्षुओ, वह गौ-घातक उन काटने के लिये लाई गई गौओं को पापपूर्ण दृष्टि से देखता है। इसी से वह न हाथीपर चढ़नेवाला होता है, न घोड़ेपर चढ़नेवाला होता है, न रथपर चढ़नेवाला होता है, न किसी दूसरी सवारीपर चढ़नेवाला होता है, न भोग्य-पदार्थोंका स्वामी होता है और न बहुत ऐश्वर्य-शाली होता है।*
*“तो भिक्षुओ, क्या मानते हो। क्या तुमने कहीं देखा या सुना है कि कोई भेड़ मारने वाला हो ….. कोई सूअर मारनेवाला हो … कोई चिड़ीमार हो …. कोई हिरन मारनेवाला हो और वह मृगों को मार मारकर बेचता हो और वह उस कर्म से, उस जीविका के साधन से, हाथीपर चढ़नेवाला हो गया हो, घोड़ेपर चढ़नेवाला हो गया हो, रथपर चढ़नेवाला हो गया हो, या किसी दूसरी सवारी पर चढ़नेवाला हो गया हो, भोग्य पदाथों का स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्यशाली हो गया हो ? “*
*भन्ते ! नहीं।’*

*“ भिक्षुओ, ठीक है। मैंने भी न कहीं देखा है और न सुना है कि कोई भेड़ मारने वाला हो ….. कोई सूअर मारनेवाला हो … कोई चिड़ीमार हो …. कोई हिरन मारने वाला हो और वह मृगोंको मार मारकर बेचता हो और वह उस कर्मसे, उस जीविकाके साधन से, हाथी पर चढ़नेवाला हो गया हो, घोड़ेपर चढ़नेवाला हो गया हो, रथपर चढ़नेवाला हो गया हो, ( या किसी दूसरी ) सवारी पर चढ़नेवाला हो गया । हो, भोग्य पदार्थोंका स्वामी हो गया हो अथवा बहुत ऐश्वर्य-शाली हो गया हो। इसका क्या कारण है ?*
*भिक्षुओ, वह भेड़ मारने वाला….. सूअर मारनेवाला … चिड़ीमार …. मृग मारनेवाला उन मारने के लिए लाये गये मृगों को पापपूर्ण दृष्टि से देखता है । इसीसे वह न हाथीपर चढ़नेवाला होता है,न घोड़ेपर चढ़ने वाला होता है, न रथपर चढ़नेवाला होता है, न (किसी दूसरी) सवारी पर चढ़नेवाला होता है, न भोग्य-पदार्थोंका स्वामी होता है और न बहुत ऐश्वर्य-शाली होता है ।*
*“ भिक्षुओ, जब एक आदमी पशु-पक्षियों को वध करनेके लिये ले जाता है। और उन्हें पाप पूर्ण दृष्टिसे देखता है तो जब वह भी न हाथीपर चढ़नेवाला होता है, न रथपर चढ़नेवाला होता है, न घोड़ेपर चढ़नेवाला होता है, न रथपर चढ़नेवाला होता है, न ( किसी दूसरी ) सवारी पर चढ़नेवाला होता है, न भोग्य-पदार्थो का स्वामी होता है और न बहुत ऐश्वर्य शाली होता है तो फिर उसका तो कहना ही क्या कि जो मनुष्यको मारने के लिये ले जाता है और उसे पाप-पूर्ण दृष्टिसे देखता है। भिक्षुओ, यह उसके दीर्घ कालीन दुःख और अहित का कारण होता है। वह शरीर न रहनेपर, मरने के अनन्तर अपाय, दुर्गति को प्राप्त होता है और नरक में जन्म ग्रहण करता है।”*





