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स्वयं उपोसथ करें और अन्य अधिक से अधिक लोगों को उपोसथ के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित करें ।
अंगुत्तर निकाय :
चातुद्दसिं पञ्चदसिं,
या च पक्खस्स अट्ठमी !
पाटिहारियपक्खञ्च अट्ठंगसुसमागतं ।
उपोसथं उपवसेय्य, योपिस्स मादिसो नरो’ति ।।
अर्थ : जो भी नर मेरे सदृश होना चाहे, वह पक्ष की चतुर्दशी, पोर्णिमा, अष्टमी तथा प्रातिहारिय-पक्ष (अतिरिक्त छुट्टी) को आठ शीलों वाला उपोसथ करें ।
भगवान बुद्ध :
इस जन्म में और अगले अनेक जन्मों में सुख-शांति वैभव और मुक्ति का मार्ग चाहने वाले, पोर्णिमा, चतुर्दशि (अमावस्या के पूर्व का दिन), अष्टमी और अतिरिक्त छुट्टी के दिन ऊपोसथ करें ।
किसी अन्य दिन किए सत्कर्म / दुष्कर्म का जो फल(पुण्य/ पाप) हमें मिलता हैं, उस से कई गुना अधिक फल (पुण्य/ पाप) मिलता है, अष्टमी के दिन किए कर्म का ।
अष्टमी के दिन किए कर्म जो फल हमें मिलता हैं, उस से कई गुना अधिक फल मिलता है, चतुर्दशी (अमावास के पूर्व का दिन) के दिन किए कर्म का ।
चतुर्दशी के दिन किए कर्म का जो फल हमें मिलता हैं, उस से भी कई गुना अधिक फल मिलता है, पूर्णिमा के दिन किए कर्म का ।
संदर्भ : अंगुत्तर निकाय ।
परम पुज्य गोएंका गुरुजी भी कहते हैं कि, सभी गृहस्थ यथासंभव पूर्णिमा, अमावस्या(चतुर्दशी के दिन) & अष्टमी को उपोसथ करें
और अगर किसी भी करण से इस दिन उपोसथ करना संभव न हो तो, यथासंभव सप्ताह में किसी भी दिन उपोसथ करें ।
लेकिन सप्ताह में एक दिन उपोसथ अवश्य करें ।
स्वयं उपोसथ करें & अन्य लोगों को भी उपोसथ के लिए प्रेरित करें ।
पर ध्यान रहे, उपोसथ जैसे करना है, ठीक वैसे ही करें ।
उपोसथ कहीं कर्मकांड न बन जाएँ ।
आठ शील + अन्य चार नियमों का पालन = उपोसथ ।
1) हत्या नहीं करें ।
2) चोरी नहीं करें ।
3) 100% ब्रम्हचर्य पालन करें ।
4) झूठ नहीं बोले । निंदा, चुगली नहीं करें । अपशब्द न कहें ।
व्यर्थ की बातें, गपशप न करें ।
5) किसी भी प्रकार के मादक पदार्थ का सेवन न करें ।
6) दोपहर 12-00 बजे के बाद भोजन नहीं करें ।
दोपहर 12-00 बजे के बाद सदा पानी, चीनी-पानी (Sugar-water) नींबू-पानी, गुड-पानी, अदरक पानी, काली चाय, शहद या घी का सेवन कर सकते हैं ।
(शहद और घी एक साथ सेवन नहीं करें ।)
बहुत आवश्यक हो तो, शाम के समय छास (Butter Milk) या फल का रस भी ले सकते हैं ।
बीमार, वृद्ध, गर्भवती महिलाएँ, बच्चें और दिनभर के भूखें लोग अगर चाहें तो शाम को हल्का, थोड़ा सा आहार ले सकते हैं ।
7) नाच, गाना, संगीत, अश्लील दृश्य, माला, सुगंध, श्रृंगार, आभूषणों से दूर रहें ।
8) आराम दायक शयनासन त्यागें ।
9) संभव हो तो एक-दिवसीय विपश्यना शिविर में सम्मिलित हो।
संभव न हो तो जीतना हो सके, अधिक से अधिक विपश्यना साधना करें ।
10) धर्म श्रवण और/या धर्म पठण करें ।
11) मंगल मैत्री का अभ्यास करें ।
12) धर्म-क्षेत्र में दान दे ।
धर्म-दान (धम्म-दान) करें ।
इन बारह (12) बातों का / नियमों का पालन करें तो ही उसे उपोसथ कहते हैं ।
स्वयं उपोसथ करें और अन्य अनेक लोगों को उपोसथ के लिए प्रेरित करें ।
भगवान बुद्ध कहते हैं
एक उपोसथ ठीक से पालन करने का फल इतना बड़ा है।
भारत को पहले जंबूद्वीप दीप कहते थे।
इस जंबूद्वीप के अंदर जितने भी प्रकार की सुख संपदा एवं ऐश्वर्य है। उसका 16 गुना फल प्राप्त होता है।
इसके अलावा लगातार उपोसथ रखने वाला मनुष्य-
भय से मुक्त रहता है।
चेहरे पर शान्ति व कान्ति रहती है।
बीमारियां समाप्त होकर शरीर नीरोग रहता है।
बेहोश(मूर्छा में) व बैचैन होकर नहीं मरता है।
शरीर छूटने पर सदगति को प्राप्त होता है।
बुरी शक्तियां उसे कष्ट नहीं देती है।
धम्म् की सभी शक्तियां उसकी रक्षा करती है।
आयु बढ़ती है,सुख,बल व वर्ण बढ़ता है।
उसकी मंगल कामनाएं पूर्ण होती है।
इसके अलावा मंगलमय सुख शांति का अतुल अनंत फल मिलता है।
मङ्गल हो ।
मङ्गल मैत्री सहित ।