दीपोत्सव : अत्त दीप भव :
- विपश्यनाचार्य सत्य नारायण गोयनका,
पर्व उत्सव की महानता को कभी भूले नहीं, समाज में रहना है तो पर्व उत्सव सब मिलकर मनाने हीं चाहिए। एक दीपावली का उत्सव होता है,अमावस्या की रात है, कहीं प्रकाश का नामोनिशान नहीं, काली अंधेरी रात चारों ओर और हमदीपक जलाते हैं, दीपक की माला खड़ी करते है यह बताने के लिए कि कितना ही अंधकार क्यों ना हो हम मनुष्य हैं, हमको अंधकार पर विजय प्राप्त करनी है, प्रकाश को सामने लाना है । क्या अंधकार है ? गरीबी एक बहुत बड़ा अंधकार है। जिस समाज में जितने गरीब हैं उस समाज में उतना ही अंधकार है, जिस देश में जितने गरीब हैं उस देश में उतना ही अंधकार है । प्रकाश जागे ! लक्ष्मी जी प्रकाश का ही स्वरूप है। पुराने जमाने में उन्हें लख्मी जी भी कहते थे, श्री भी कहते थे ।
पुरातन साहित्य में लिखा है कि श्री वैभव की देवी वैभव जागे, गरीबी दूर हो वैभव जागे, समृद्धि जागे, पर्व मनाने का यही महत्व है । पर वैभव ऐसा ना जागे की तिजोरी में बंद हो जाए । लक्ष्मी कुछ लोगों की तिजोरी में बंद हो जाएगी तो समाज में गरीबी फैलेगी । दरवाजे खुले रहें, बहती गंगा निर्मला, बहता पानी निर्मला । एक ओर हम मेहनत, परिश्रम और ईमानदारी से धन कमाए, देश का धन बढ़ाएं । एक और वह बटे, लोगों में जाए, थोड़े से लोगों तक सीमित नहीं, केवल परिश्रम करने वाले के पास में नहीं, सभी लोगों में बटे तो गरीबी दूर हो। केवल दीपावली को लक्ष्मी जी की पूजा धूपबत्ती जला कर हम यह सोचे कि अब लक्ष्मी माता खुश हो जाएंगी, हमारे घर में उजाला ही उजाला कर देगी, धन-संपत्ति भर देगी । धन-संपत्ति कर्म के बल परआती है यह नहीं भूलना चाहिए हम यह सोचे कि हमारे ऊपर किसी गुरुदेव की कृपा हो गई या किसी देवी की कृपा हो गई या हमारे संप्रदाय के पूज्य की कृपा हो गई, इसलिए हमारे घर में धन की वर्षा हो गई और जो मानते नहीं हैं उनके यहां गरीबी आ गई, यह पागलपन की बात है। अपने अनेक गुणों के प्रताप से घर में धन आता है और पुण्य हीन है तो गरीबी आती है तो पूण्य के बीज बोते जाइये अपने आप धन आएगा । धन बांटने से आता है जितना हम देते हैं वह बढ़ चढ़कर वापिस आता है, यह प्रकृति का नियम है और संग्रह करने से वह बढ़ जाए, ये पागलपन है । यह लक्ष्मी माता की अवमानना हैं, सम्मान नहीं करते हैं लक्ष्मी जी का सम्मान है, जो गरीब है तो धन का सम विभाग होता रहे, धन आना चाहिए बल्कि गृहस्थ के लिए बहुत आवश्यक है, लेकिन उसका सही उपयोग होना चाहिए ।
एक पुरानी कथा के अनुसार एक धनी व्यक्ति जिसका व्यापार पूरे भारत व भारत के पड़ोस पड़ोस के देशों में फैला हुआ है और उसके पास बहुत धन आता है, वह खुले हाथों से धन को बाटता भी है जहां जहां उसका व्यापार है वहां उसका नियम है कि कोई भी भूखा ना सोए सभी को भोजन मिले तभी मेरे पास धन आना सार्थक हुआ इसीलिए वह व्यापारी अनाथ पिंड कहलाया वह व्यक्ति भगवान के संपर्क में आया और उसे एक अनमोल धन प्राप्त हुआ मुक्ति का धन प्राप्त हुआ। मन की सभी चिंताओं को हर लेने वाली शीतलता शांति प्राप्त हुई, तो वह भगवान को अपने यहां निमंत्रण देता है, उनके लिए बहुत बड़े-बड़े महंगे पकवान बन माता है, धरती को करोड़ो की अशर्फियों से ढक देता है, उनकी देखभाल के लिए अनेकों को लगाता है इतना बड़ा दान क्यों ? भारत की बड़ी नगरी श्रावस्ती मैं जब लोग देखेंगे, सभी तपेंगे तब कितना पुण्य प्राप्त होगा। धन का सार्थक प्रयोग हुआ तो किसी भी परिस्थिति में उतार-चढ़ाव में पुण्य का धन हमेशा उसके साथ रहेगा । भगवान ने ऐसे ग्रहस्थ को अग्र की उपाधि दी, वह अग्रपाल कहलाए ।इसी प्रकार उनके वंशजों ने भी इसी परंपरा को कायम रखने के लिए दान पुण्य किए ।
सदियों बाद सातवाहन वाले राजा के वंश में एक गरीब युवती जन्म हुआ जो मेहनत करके कम वेतन में अपना गुजारा करती है लेकिन क्योंकि वह अग्रवंशीबेटी तो वह आधा रखती है आधा दान करती है यह बात जब राजा को पता लगती है तब वह आश्चर्यचकित होता है और वह उसे बुलाता है उसका तेज देखकर उसका धर्म देखकर वह इतना प्रभावित होता है कि वह उसे राजमहषि बनाता है, उसे रानी बनाता है । इतिहास की घटना है दीया हुआ दान कहीं नहीं जाता है, अपने आप उसका फल भी आता है तो यह जो दीपोत्सव होता है यह केवल धन संग्रह करने का नहीं, बल्कि धन बांटने का भी हो और जो यह हम दीप जलाते हैं, जो अंधकार दूर होता है उसके साथ मन का अंधकार भी दूर हो ।जो हम प्रार्थना करते हैं कि मन का अंधकार दूर हो और प्रकाश जागे तो अंधकार दूर करने के लिए खुद ही जागना होगा, मन का अंधकार दूर होते ही पूरी दुनिया प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देगा !
जिसने मन का दीप जलाया, उसने जग को उजला पाया :
“मन का दीप जलना चाहिए, मन का दीप जलने के लिए हमें शुद्ध धर्म को समझना चाहिए ताकि हम आगे के लिए भी प्रकाशवान बने “
भगवान ने कहा इस दुनिया में चार प्रकार के लोग होते हैं :
एक जो अंधकार से अंधकार की ओर ही भागे जा रहे हैं,
दूसरे वह जो प्रकाश से अंधकार की ओर जा रहे हैं,
तीसरे वह जो प्रकाश से प्रकाश की ओर जा रहे हैं और
चौथे वह जोअंधकार से प्रकाश की ओर जा रहे हैं ।
प्रकाश से अंधकार की ओर जाने वाले और अंधकार के अंधकार की ओर जाने वाले मूर्ख है और जो प्रकाश की ओर जा रहे हैं वह आर्य बन रहे हैं ।यह बात समझने की है कि अंधकार से अंधकार की ओर जाने वाला अपने जीवन में दुख व्याकुलता और परेशानियों के होते हुए भी अपने आगे के समय के लिए और अंधकार पैदा कर रहा है। अपने पूर्व कर्मों का आंकलन करने के बजाय दूसरों को दोष देता है और प्रकाश से अंधकार की ओर जाने वाले लोग अपने वर्तमान समय में प्राप्त सभी उपलब्धियों का घमंड करते हैं और दूसरे लोगों को हींन भावना से देखते हैं,,घृणा करते हैं और अंधकार से प्रकाश की ओर जाने वाले अपने दोषों को, अपनी गलतियों को सजग होकर दूसरों को दोष देने के बजाय अपने आपको दोषी मानकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं और प्रकाश से प्रकाश की ओर जाने वाले लोग समझते हैं कि जो भी उपलब्ध किया है वह पुण्य कर्मों से पाया और मुझे अभी भी और पुण्य कमाना है और अच्छे काम करने हैं ताकि मेरे आगे वाले समय में भी प्रकाश बना रहे, जो भी प्राप्त किया उसे संग्रह करने के बजाए मैं बाटता चलूं, औरों का भला भी करूं, तो मन में प्रज्ञा का भाव जागता है ।
हमें जैसे कर्म करनी चाहिए जिससे जीवन में प्रकाश बना रहे । भगवान बुद्ध के अंदर प्रकाश जागा । पहले उन्हें धर्म का ज्ञान नहीं था, पर जब अपने पुण्य कर्मों से उनके अंदर प्रकाश जागने लगा तब उन्होंने सही में धर्म को पाया, उनके भीतर प्रज्ञा का भाव जागा, आलोक जागा । परिश्रम और कड़ी मेहनत से ही मन में प्रकाश जागता है, किसी की कृपा से नहीं जागता ।अगर किसी की कृपा से जागता तो वह व्यक्ति सामर्थ्यवान नहीं है, कारुणिक नहीं है, अपने उत्तरदायित्व को पूरा करके ही मन में प्रकाश जागता है ।
प्रकाश का यह पर्व मनाते मनाते हमें एक और चीज का ध्यान रखना है कि प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण जिससे वातावरण को नुकसान पहुंचता है, बच्चों में घबराहट होती है, पशु पक्षियों में घबराहट होती है, जिससे दूसरों को दुख पहुंचता है, ऐसा हमें नहीं करना है । हमने सभी में प्रसन्नता फैलानी है और इन सभी विकारों को दूर करना है, तभी सबका मंगल होगा, कल्याण हो स्वस्थ होगा ।